खाटूश्याम बाबा का बर्बरीक नाम से क्या है संबंध, जानें पूरी कहानी

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यूं तो आपने कलयुग के देवता माने जाने वाले खाटूश्याम का नाम खुब सुना होगा…उनके मंदिरों में श्रद्धालुओं का हुजूम भी देखा होगा…और ये भी सुना होगा कि खाटुश्याम को हारे का साथ देने वाले देवता के रूप में भी पूजा जाता है….लेकिन क्या आप जानते हैं कि खाटूश्याम के साथ आखिर श्याम का नाम कैसे जुड़ा…आखिर देव तुल्य खाटूश्याम को भगवान खाटूश्याम क्यों कहते हैं…और खाटूश्याम बाबा का बर्बरीक नाम से क्या संबंध है…तो चलिए आपको बताते हैं…

दरअसल बर्बरीक दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे…बर्बरीक को भगवान शिव ने वरदान दिया था कि वह अपने तीन बाणों से तीनों लोक जीत सकते हैं. भगवान शिव ने उन्हें वरदान के साथ तीन अमोघ बाण भी दिए और बर्बरीक के लिए तीन बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरवों और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे…युद्ध के मैदान में भीम पौत्र बर्बरीक दोनों खेमों के मध्य बिन्दु एक पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए और यह घोषणा कर डाली कि मैं उस पक्ष की तरफ से लड़ूंगा जो हार रहा होगा…. बर्बरीक की इस घोषणा से कृष्ण चिंतित हो गए….

 

भीम के पौत्र बर्बरीक के समक्ष जब अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण उसकी वीरता का चमत्कार देखने के लिए उपस्थित हुए तब बर्बरीक ने अपनी वीरता का छोटा-सा नमूना दिखाया…कृष्ण ने कहा कि ये जो वृक्ष है ‍इसके सारे पत्तों को एक ही तीर से छेद दो तो मैं तुम्हारी वीरता को मान जाऊंगा.. बर्बरीक ने आज्ञा लेकर तीर को वृक्ष की ओर छोड़ दिया…जब तीर एक-एक कर सारे पत्तों को छेदता जा रहा था उसी दौरान एक पत्ता टूटकर नीचे गिर पड़ा। कृष्ण ने उस पत्ते पर यह सोचकर पैर रखकर उसे छुपा लिया कि यह छेद होने से बच जाएगा, लेकिन सभी पत्तों को छेदता हुआ वह तीर कृष्ण के पैरों के पास आकर रुक गया। तब बर्बरीक ने कहा कि प्रभु आपके पैर के नीचे एक पत्ता दबा है कृपया पैर हटा लीजिए, क्योंकि मैंने तीर को सिर्फ पत्तों को छेदने की आज्ञा दे रखी है आपके पैर को छेदने की नहीं…..उसके इस चमत्कार को देखकर कृष्ण चिंतित हो गए।

 

भगवान श्रीकृष्ण यह बात जानते थे कि बर्बरीक प्रतिज्ञावश हारने वाले का साथ देगा। यदि कौरव हारते हुए नजर आए तो फिर पांडवों के लिए संकट खड़ा हो जाएगा और यदि जब पांडव बर्बरीक के सामने हारते नजर आए तो फिर वह पांडवों का साथ देगा। इस तरह वह दोनों ओर की सेना को एक ही तीर से खत्म कर देगा…तब भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का भेष बनाकर सुबह बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुंच गए और दान मांगने लगे। बर्बरीक ने कहा- मांगो ब्राह्मण! क्या चाहिए? ब्राह्मणरूपी कृष्ण ने कहा कि तुम दे न सकोगे। लेकिन बर्बरीक कृष्ण के जाल में फंस गए और कृष्ण ने उससे उसका शीश मांग लिया…बर्बरीक की ओर से अपने पितामह पांडवों की विजय हेतु स्वेच्छा के साथ शीशदान कर दिया गया। बर्बरीक के इस बलिदान को देखकर दान के पश्चात श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वर दिया….और इसीलिए आज बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है….

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