देश में पहले कब-कब हुईं नोटबंदी और इसकी जरुरत क्यों पड़ी? जानिए पूरा इतिहास

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देश में जबसे 2000 हजार के नोट को बंद करने की खबर लोगो के सामने आई है तबसे लोगो ने कई तरीके से अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दी है. यह बात तो हम सब जानते की  वर्ष 2016 में नोटबंदी की गई थी जिसके बाद 2000 के नोट चलन में आए लेकिन क्या आप जानते है कि 2000 के नोट वर्ष 2018 में छपने बंद कर दिए गए थे जिस वजह से आपने कभी गौर किया हो तो जानते होगे कि यह बाजार में कम दिखने लगा था… बताते चले कि आरबीआई ने 2000 रुपये के नोट को सर्कुलेशन से बाहर करने का ऐलान किया है. हालांकि, ये लीगल टेंडर में बने रहेंगे. इन नोटों को वापस करने के लिए 30 सितंबर तक का समय है. लेकिन ये पहली बार नहीं है जब इस तरह से बड़े नोट को बंद किया गया है. इससे पहले भी कई बार बड़े नोटों को बंद किया जा चुका है….. जिसका एक अच्छा खासा इतिहास रहा जिसका जिक्र आज हम अपनी इस विडियो में करगे जिसके लिए यह विडियो आखिरी तक जरुर देखे..

क्या आप जानते है कि आजादी से पहले भी नोटबंदी हो चुकी है जी हां 1946 में पहली बार बड़े नोट बंद किए गए….तारीख थी 12 जनवरी 1946 जबा ब्रिटिश इंडिया के तत्कालीन गवर्नर जनरल सर आर्चीबाल्ड ने बड़े नोटों को बंद करने का अध्यादेश पास किया था. इसके 13 दिन बाद 26 जनवरी 1946 को 500, 1000 और 10000 रुपये के नोट चलन से बाहर हो गए थे. आजादी से पहले 100 रुपये से ऊपर के सभी नोटों को बंद कर दिया गया था.ये फैसला काला धन खत्म करने के मकसद से लिया गया था. माना गया था कि भारतीय कारोबारियों ने भारी संपत्ति जमा कर ली थी और इनकम टैक्स से इसे छिपाया था. 1978 की नोटबंदी…उस समय केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे. जनता पार्टी की सरकार को बने सालभर ही हुआ था. रिपोर्ट्स के मुताबिक, 14 जनवरी 1978 को आरबीआई को बताया गया कि सरकार बड़े नोट बंद करने का मूड बना चुकी है. इसके बाद आरबीआई ने नोट वापस लेने का अध्यादेश बनाया और इसे तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी ने मंजूरी भी दे दी. इसी के साथ 16 जनवरी 1978 को 1000, 5000 और 10000 रुपये के नोट बंद हो गए.16 जनवरी की सुबह-सुबह आकाशवाणी पर इसका ऐलान किया गया. माना जाता है कि जनता पार्टी की सरकार ने ये फैसला पिछली सरकार के कुछ कथित भ्रष्ट लोगों को निशाना बनाने के लिए फैसला लिया था. फिर आई 8 नवंबर 2016 की तारीख 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया था. इसके तहत 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को चलने से बाहर कर दिया था.इसके बदले में 500 के नए नोट जारी किए गए थे. जबकि एक हजार का नोट बंद ही हो गया और इसकी जगह 2000 का नोट आया. नोटबंदी का ऐलान करते समय सरकार ने कहा कि इसका मकसद काले धन पर अंकुश लगाना, जाली नोटों को रोकना और टेरर फंडिंग को बंद करना है.

हालांकि, आरबीआई ने बताया था कि नोटबंदी के समय देशभर में 500 और 1000 रुपये के कुल 15.41 लाख हजार करोड़ रुपये के नोट चलन में थे. इनमें 15.31 लाख हजार करोड़ के नोट सिस्टम में वापस आ गए थे. यानी 500 और 1000 के 99 फीसदी से ज्यादा नोट बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गए थे. नवंबर 2016 की नोटबंदी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर हुई थीं. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि नोटबंदी का फैसला खतरनाक था और इसके लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई थी, उसमें खामियां थीं.हालांकि, इसी साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने 4-1 से नोटबंदी को सही ठहराया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान और आरबीआई एक्ट ने केंद्र सरकार को नोटबंदी का अधिकार दिया है. उसका इस्तेमाल करने से कोई नहीं रोक सकता है. अब तक दो बार नोटबंदी यानी डिमोनेटाइजेशन के इस अधिकार का इस्तेमाल हुआ था और ये तीसरा मौका था. आरबीआई अकेले नोटबंदी का फैसला नहीं कर सकता.

कोर्ट ने कहा था, किसी भी फैसले को इसलिए गलत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि वो सरकार ने लिया था. रिकॉर्ड देखने से पता चलता है कि नोटबंदी से पहले आरबीआई और केंद्र सरकार के बीच 6 महीने तक बातचीत हुई थी.

हालांकि, पांच जजों में से एक जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने नोटबंदी को गैर-कानूनी बताया था. उन्होंने कहा था, 500 और 1000 रुपये के नोटों की पूरी सीरीज को बंद कर देना गंभीर मामला है और सिर्फ एक गजट नोटिफिकेशन के जरिए केंद्र ऐसा नहीं कर सकती.

 

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