गहलोत बनाम सचिन पायलट का मुद्दा आज भी सुर्खियां में छाया हुआ है… जहां एक ओर पायलट के समर्थक उन्हें इस बार सीएम की गद्दी पर बैठा देखना चाहते हैं तो वहीं दूसरी ओर सीएम गहलोत के समर्थक उन्हें रिपीट करना के लिए पूरजोर लगा रहे है… दोनों के समर्थक अपने-अपने नेता को सीएम की गद्दी पर देखना चाहते है… वहीं इस चुनावी माहौल में दोनों के बीच की रस्साकसी को हाईकमान अब तक नहीं सुलझा पाया है…जिसका असर आने वाले चुनाव में पड़ सकता है…
सचिन पायलट को भले हाईकमान ने मुख्यमंत्री बनाने का वादा कर रखा है… लेकिन पायलट के पक्ष ज्यादा मजबूत नहीं है…क्योंकि जुलाई में जब पायलट मानेसर के रिजॉर्ट में अपने करीबियों को लेकर गए थे उस समय उनके पास सिर्फ 20 विधायक थे जिस वजह से गहलोत सरकार बच गई थी… क्योंकि उनके समर्थन में करीब 100 विधायक हैं… इसी वजह से विवाद उलझा है जिसे हाईकमान अब तक सुलझा नहीं पाया…
सचिन के बागी तेवरों के बाद भी आलाकमान अशोक गहलोत और उनके समर्थक विधायकों पर कोई कार्रवाई नहीं कर पाई… ऐसे में सचिन के लिए राजस्थान की सत्ता पिछले 5 साल में कुछ खट्टे अंगूर की तरह साबित हुई है…
गहलोत के समर्थन में लगभग 82 विधायकों है क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष पद के विवाद से समय 82 विधायकों ने सामूहिक रूप से स्पीकर सीपी जोशी को अपना इस्तीफा सौंप था… वहीं बात करें सचिन पायलट की तो उनके गुट में लगभग 18 विधायक पायलट के साथ है… जिसमें विश्वेंद्र सिंह, रमेश मीणा, भंवरलाल शर्मा के साथ नेता तमाम नाम जुड़े हैं..
राजस्थान विधानसभा चुनाव में 10 महीने से भी कम का वक्त बचा है… लेकिन अब तक दोनों के बीच चल रहा विवाद सुलझा नहीं है… यूं तो राजस्थान में बीजेपी-कांग्रेस के बीच सत्ता की जंग होनी थी… लेकिन अब ये जंग अशोक गहलोत और सचिन पायलट के साथ उनके गुटों में नजर आ रही है… जिसका आने वाले विधानसभा में भी असर पड़ सकता है…