Ceasefire Between Iran-Israel: ईरान-इजरायल की जंग रुकी, जानिए किन शर्तों पर हुआ सीजफायर! 

मिडल ईस्ट की टेंशन भरे माहौल में एक बेहद चौंकाने वाली और राहत भरी खबर आई है — ईरान और इजरायल के बीच आखिरकार युद्धविराम हो गया है! और इस पूरे घटनाक्रम के पीछे एक नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है — अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप। जी हां, वही ट्रंप जो खुद को हमेशा "शांति का मसीहा" कहने से नहीं चूकते, अब एक बार फिर सुर्खियों में हैं।

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Ceasefire Between Iran-Israel: सूत्रों की मानें तो ये सीजफायर ट्रंप की फोन डिप्लोमेसी का नतीजा है। सोमवार को व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ट्रंप ने सीधे इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को फोन किया और कहा, “बीबी को बुलाओ। हम शांति बनाने जा रहे हैं।” वहीं, ट्रंप की टीम — जिसमें उपराष्ट्रपति जेडी वेंस, विदेश मंत्री मार्को रुबियो और अमेरिकी विशेष दूत स्टीव विटकॉफ शामिल थे — ने तेहरान से बातचीत की, वो भी सीधे और परोक्ष दोनों तरीकों से।

 

अब जरा समझते हैं कि सीजफायर की शर्तें क्या थीं। इजरायल की तरफ से एक ही मांग थी — “ईरान अब कोई नया हमला न करे।” इसके जवाब में ईरान ने भी सकारात्मक संकेत दिए और कहा कि अगर इजरायल कोई हमला नहीं करता, तो वह भी युद्ध नहीं चाहेगा। यानी सीधा फॉर्मूला – “ना हम मारेंगे, ना तुम मारो।”

 

हालांकि मामला इतना सीधा भी नहीं था। ट्रंप ने सोमवार को ऐलान कर दिया था कि “पूर्ण और समग्र युद्धविराम कुछ ही घंटों में लागू हो जाएगा”, लेकिन इसी के थोड़ी देर बाद दोनों पक्षों ने एक-दूसरे को फिर से धमकियां दे डालीं। इसी दौरान ईरान ने एक अमेरिकी एयरबेस पर मिसाइल दाग दी — शुक्र है कि इसमें कोई हताहत नहीं हुआ। जवाब में अमेरिका ने भी ईरान की भूमिगत परमाणु साइट्स पर 30,000 पाउंड के बंकर-बस्टर गिरा दिए। इससे तनाव अपने चरम पर पहुंच गया।

 

Ceasefire Between Iran-Israel: लेकिन यहीं से ट्रंप एक्टिव हो गए। शनिवार रात उन्होंने अपनी टीम को निर्देश दिया — “ईरानियों से फोन पर बात करो।” और फिर शुरू हुआ सीधा संवाद। ट्रंप का इरादा साफ था — वह युद्ध नहीं, शांति चाहते थे। खासकर उस वक्त जब अमेरिका पहले से ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आलोचना का शिकार हो रहा था।

 

ट्रंप की टीम की ईरान से पहले भी पांच बार बातचीत हो चुकी थी, लेकिन बात तब बिगड़ गई थी जब ईरान ने यूरेनियम संवर्धन पर अड़ गए थे। मगर इस बार जब अमेरिका ने सैन्य दबाव बनाया, तो ईरान ने भी नरमी दिखाई। अंत में सीजफायर की नींव पड़ी।

 

एक और दिलचस्प बात ये रही कि ईरान ने सीजफायर को “सम्मान” देने की बात तब मानी जब उन्हें भरोसा हुआ कि इजरायल अब हमला नहीं करेगा। यानी दोनों देश जानते हैं कि जंग किसी का फायदा नहीं करती।

 

अब अगर ये युद्धविराम लंबे समय तक टिका रहा, तो इसका सबसे बड़ा राजनीतिक फायदा ट्रंप को ही मिलेगा। 2024 चुनावों के पहले वह इसे एक बड़ी डिप्लोमैटिक जीत के रूप में पेश कर सकते हैं। साथ ही आलोचकों के मुंह भी बंद हो सकते हैं, जो उन्हें अक्सर युद्ध भड़काने वाला नेता मानते हैं।

 

तो फिलहाल तो लगता है कि मिडल ईस्ट की सुलगती आग पर पानी पड़ चुका है — और इसका श्रेय, चाहें आप दें या ना दें, ट्रंप को ही जाता है!

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