International Mother Language Day: विश्व मातृभाषा दिवस आज, क्या है इस दिन का इतिहास, पाकिस्तान की बर्बरता से जुड़ा है राज़
फरवरी 1999 से आज का दिन विश्व मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को विश्व मातृभाषा के रूप में मनाने का एलान यूनेस्को ने किया था. जिसके बाद बांग्लादेश की पहल पर इसे मनाने की शुरुआत की गई थी. इसी के बाद से सन 2000 से पूरी दुनिया मातृभाषा दिवस मनाने लगी है.
आज है विश्व मातृभाषा दिवस
पीएम ने दिया था दिल छूने वाला भाषण
साल 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Pradhan Mantri Narendra Modi) ने मातृभाषा पर कई बड़े-बड़े बयान दिए थे. जो जनता के दिल को छू गया था. पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ (Man Ki Baat) की 86वीं कड़ी में कहा था कि. मां और मातृभाषा (Mother Language) मिलकर जीवन को मजबूती देते हैं. कोई भी व्यक्ति अपनी मां और मातृभाषा को नहीं छोड़ सकता. ना ही इसके बिना जीवन में तरक्की कर सकता है
विश्व मातृभाषा दिवस का इतिहास
विश्व मातृभाषा दिवस (International Mother Language Day) आखिर क्यों मनाते है. कहां से शुरु हुआ आखिर इसका इतिहास (History) क्या है. इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे. बांग्लादेश में लोगों ने 21 फरवरी को बांगला भाषा की मान्यता के लिए संघर्ष किया था. उस समय आज का बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान (East Pakistan) हुआ करता था. आपको बता दें कि 1947 में जब पाकिस्तान (Pakistan) तब भौगोलिक रूप से दो हिस्सों में बंटा था पूर्वी पाकिस्तान (East Pakistan) और पश्चिमी पाकिस्तान (West Pakistan). बाद में पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश (Bangladesh) बन गया था. ये दोनों हिस्से भाषायी और सांस्कृतिक रूप स बिल्कुल अलग थे.
भाषा के लिए लोगों ने किया था संघर्ष
पाकिस्तान सरकार (Pakistan Govt) ने 1948 में उर्दू को पाकिस्तान (Pakistan) की राष्ट्रीय भाषा घोषित किया था. लेकिन पूर्वी पाकिस्तान (East Pakistan) में ज्यादातर लोग बांग्ला बोलते थे. जिसके बाद से ही पूर्वी पाकिस्तान (East Pakistan) में विरोध की आग की चिंगारी लगी. जिसमें लोगों ने ऊर्दू के साथ बाग्ला को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा देने की मांग कि. आपको बता दें कि इस मांग को सबसे पहले धीरेंद्रनाथ दत्त ने उठाया था
पाकिस्तान सरकार ने खुलेआम चलाई थी गोलियां
विरोध की आग को पाकिस्तान (Pakistan) ने पुरजोर तरीके से कुचलने की कोशिश की थी. पुलिस ने विरोध करने वालों पर खुलेआम गोलियां भी बरसाई थी. जिसमें कई लोगों की जान चली गई थी. वहीं सैंकड़ो लोग घायल भी हुए थे. इतिहास में इससे पहले शायद ही कभी ऐसा हुआ था. जिसमें लोगों ने अपनी मातृभाषा के लिए जान भी गंवाई थी. जिसके बाद भाषा आंदोलन को श्रद्धांजलि देने के लिए ही यूनेस्को ने इसे मनाने का ऐलान किया था