
Varanasi News: रोड चौड़ीकरण की भेंट चढ़ी ‘पहलेवान लस्सी’ और ‘चाची की दुकान’: लंका वाराणसी में टूटीं मशहूर दुकानें।
काशी की प्राचीनता और संस्कृति में रची-बसी लंका क्षेत्र की गलियों में अब वो नज़ारा नहीं रहा। स्थानीय लोगों की यादों और युवाओं की सेल्फ़ी पॉइंट बनी 'पहलेवान लस्सी' और 'चाची की दुकान' जैसी ऐतिहासिक दुकानें अब सरकारी बुलडोज़र की भेंट चढ़ चुकी हैं। प्रशासन ने इस कदम को "रोड चौड़ीकरण और स्मार्ट सिटी योजना" के तहत जरूरी बताया है, परन्तु इससे स्थानीय लोगों में नाराज़गी और भावनात्मक क्षति साफ़ देखी जा सकती है।
Varanasi News: क्यों टूटीं ये दुकानें?
नगर निगम और जिला प्रशासन द्वारा जारी आदेश के अनुसार, लंका से अस्सी रोड तक सड़क को चौड़ा करने की योजना लंबे समय से प्रस्तावित थी। यह मार्ग काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के मेन गेट से गुजरता है और पूरे शहर की ट्रैफिक लाइफ़लाइन माना जाता है। यहाँ ट्रैफिक जाम, अतिक्रमण और अव्यवस्था आम समस्या बन चुकी थी।
प्रशासन ने स्पष्ट किया कि जिन दुकानों को हटाया गया है, वे “अवैध अतिक्रमण की श्रेणी” में आती थीं और कई बार नोटिस के बावजूद उन्हें हटाया नहीं गया। इसी कारण से एक्शन लेना ज़रूरी हो गया। इसके तहत, ‘पहलेवान लस्सी’, ‘चाची की दुकान’, और कई अन्य पुराने स्थानीय प्रतिष्ठानों को हटाया गया।
भावनात्मक नुकसान और विरोध
पहलेवान लस्सी केवल लस्सी की दुकान नहीं थी, बल्कि एक पहचान थी – BHU के छात्रों की, सैलानियों की, और उन लाखों लोगों की जो वाराणसी की मिठास को एक कुल्हड़ लस्सी में ढूंढ़ते थे। वहीं ‘चाची की दुकान’ सिर्फ़ समोसे और चाय की दुकान नहीं थी, वो एक मिलन स्थल थी जहां छात्रों की बहस, कविताएं और इश्क़ के किस्से पनपते थे।
इस कार्रवाई के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने नाराज़गी जाहिर की है – #SavePahalwanLassi और #JusticeForChachiKiDukaan जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। कई स्थानीय नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस कार्रवाई को “संस्कृति पर प्रहार” बताया है।
Varanasi News: आगे की योजना
प्रशासन ने यह भी कहा है कि भविष्य में इन प्रतिष्ठानों को पुनः स्थापित करने के लिए एक वैकल्पिक स्थान देने पर विचार किया जा रहा है। साथ ही लंका क्षेत्र में “स्मार्ट रोड” और सुंदर फुटपाथ की योजना को शीघ्र लागू करने की बात कही गई है।
निष्कर्ष:
लंका की सड़कों को चौड़ा करने के लिए उठाया गया ये कदम विकास की दिशा में भले ही जरूरी हो, लेकिन इसमें संस्कृति, भावना और यादों की कीमत भी चुकानी पड़ रही है। सवाल यही है — क्या विकास बिना विरासत मिटाए संभव नहीं है?