United Nations General Assembly: मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने कश्मीर पर अपना बयान देकर नए विवाद को उत्पन्न कर दिया है। UN में विश्व नेताओं को संबोधित करते हुए तुर्की के राष्ट्रपति ने कहा, कि भारत को पाकिस्तान के साथ मिलकर कश्मीर के मसले को जल्द ही हल करना चाहिए। एर्दोगन ने हाल ही में नई दिल्ली में G-20 देशों के शिखर सम्मेलन में तुर्की का प्रतिनिधित्व किया था। इस दौरान टर्की के राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत की थी। जिसमें उन्होंने ने कहा, कि कश्मीर के मुद्दे को भारत और भारत के बीच बातचीत और सहयोग के माध्यम से हल किया जाना चाहिए। एर्दोगन के अनुसार, दोनों एशियाई देशों के बीच बातचीत होना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे विकास का मार्ग प्रशस्त होगा। घाटी पर भारत के सख्त रुख के बावजूद तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के 78वें सत्र में अपने संबोधन के दौरान एक बार फिर कश्मीर का मुद्दा उठाया है।
भारत के सख्त रूख के बाद आया बयान
गौरतलब है, कि यह पहली बार नहीं है जब तुर्की नेता ने वैश्विक मंच पर कश्मीर घाटी को लेकर चिंता जताई है। इससे पहले 2022 में भी तुर्की के राष्ट्रपति ने उच्चस्तरीय संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र में विश्व के सामने अपने संबोधन के दौरान कश्मीर का मुद्दा उठाया था। एर्दोगन ने कहा, “भारत और पाकिस्तान, 75 साल पहले अपनी संप्रभुता और स्वतंत्रता स्थापित करने के बाद अभी भी एक दूसरे के बीच शांति और एकजुटता स्थापित नहीं कर पाए हैं। ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. हम आशा और प्रार्थना करते हैं, कि कश्मीर में निष्पक्ष और स्थायी शांति और समृद्धि स्थापित होगी”।
Turkish President Recep Tayyip Erdogan has again raked up the issue of Kashmir during his address at the 78th session of the UN General Assembly session despite India's staunch stand on the valley.#Kashmir #RecepTayyipErdoğan #UNGA #UNGA78 #UnitedNations pic.twitter.com/f1N1ZE2uuT
— Ajeet Kumar (@Ajeet1994) September 20, 2023
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एर्दोगन के बयान पर भारत का रूख
तुर्की के राष्ट्रपति के UN में दिए गए भाषण के बाद भारत की तरफ से अभी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. इससे पहले 2022 में एर्दोगन के बयान के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस बयान की कड़ी निंदा की थी। इसके साथ भारत की तरफ से इसे आंतरिक मुद्दा बताया गया था। लेकिन फिर से एर्दोगन का इस तरह का बयान निश्चित तौर पर सवाल खड़े कर रहा है।
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