Sharmistha Panoli Case: शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी पर सियासी घमासान: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या नफरत का प्रचार?
पुणे की 22 वर्षीय लॉ छात्रा और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी ने देशभर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सांप्रदायिक सौहार्द को लेकर नई बहस छेड़ दी है। 'ऑपरेशन सिंदूर' से जुड़ी एक विवादित वीडियो के चलते कोलकाता पुलिस ने उन्हें गुरुग्राम से गिरफ्तार किया और 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया ।
Sharmistha Panoli Case: इस मामले में राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पहले भी धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले बयानों की कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा था, “मैं हाल के घृणित और जघन्य नफरत भरे भाषणों की कड़ी निंदा करती हूं, जो न केवल हिंसा फैलाते हैं, बल्कि देश की एकता को भी खतरे में डालते हैं।” उन्होंने ऐसे नेताओं की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की थी ।
इस बीच, भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी को ‘तुष्टिकरण की राजनीति’ करार दिया और तृणमूल कांग्रेस पर निशाना साधा । उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार धार्मिक भावनाओं के नाम पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचल रही है।
Sharmistha Panoli Case: बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत ने भी शर्मिष्ठा के समर्थन में आवाज उठाई। उन्होंने कहा, “हालांकि उनके शब्द अप्रिय थे, लेकिन उन्हें डराने या परेशान करने की कोई आवश्यकता नहीं है।” कंगना ने इस मामले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़ते हुए शर्मिष्ठा की तत्काल रिहाई की मांग की ।
शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक सहिष्णुता के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जाए। यह मामला न केवल कानूनी, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण बन गया है।
जैसे-जैसे यह मामला आगे बढ़ेगा, यह देखना दिलचस्प होगा कि न्यायपालिका और सरकारें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सांप्रदायिक सौहार्द के बीच संतुलन कैसे स्थापित करती हैं।