Sawan 2024: शिवलिंग नहीं इस मंदिर में होती है भगवान शिव के अंगूठे की पूजा 

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Sawan 2024: सावन का पावन महीना चल रहा है इस समय सभी भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग तरह की धर्मीक अनुष्ठान कर रहे हैं। सोमवार के दिन मंदिरों में भक्तों की लंबी लाइन दिखाई दे रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं भारत में एक ऐसा भी दुर्लभ मंदिर है जहां भोलेनाथ के अंगूठे की पूजा की जाती है। ये मंदिर राजस्थान के सिरोहा जिले में है। इस मंदिर का नाम अचलेश्वर महादेव मंदिर है।

शिवपुराण और स्कंद पुराण में भी मिलता है मंदिर का उल्लेख 

इस मंदिर का इतिहास काफी पुरान है। बता दें कि माउंट आबू ऋषि वशिष्ठ की तपस्थली है। इस मंदिर का उल्लेख शिवपुराण और स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में भी मिलता है। मंदिर के मुख्य गेट के सामने पंचधातु की नंदी की प्रतिमा है, जिसका वजन करीब 4 टन है। यहां मुख्य मंदिर में एक शिलालेख भी लगा है।

ब्रह्म खाई में होती है भोलेबाबा के अंगूठे की पूजा

मुख्य मंदिर में यहां पर 108 छोटे शिवलिंग हैं। इसके आसपास कई पूरानी मूर्तियां भी हैं। वहीं गर्भ गृह में अर्बुद नाग की मूर्ती के बीच गहरी खाई बनी हुई है। इस खाई की खासियत ये है कि इस खाई में आप चहें कितना ही जल अर्पीत कर लें ये कभी भरता नहीं है। गर्भ गृह में महाराजा कुम्भा द्वारा स्थापित की गई और भी कई देव प्रतिमाएं हैं।

हजारों साल पुराना है मंदिर का इतिहास

मंदिर के पुजारी से बातचीत के दौरान पुजारी ने बताया कि मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। भगवान इंद्रदेव ने यहां एक ब्रह्म खाई का निर्माण की थीं। वशिष्ठ आश्रम में नंदिनी नाम की गाय रहती थी जो कि अक्सर खाई में गिर जाती थी। जिसकों देखते हुए ऋषि ने देवी सरस्वती की आह्वान किया, जिसके बाद गाय बाहर निकली। देवों ने भगवान ऋषि से कहा आपके आश्रम के बाहर गहरी खाई है, जिसका कोई उपाय कीजिए।

तब अर्बुदांचल पर्वत और अर्बुद नाग को लाकर ब्रह्म खाई पर स्थापित किया। बाद में यहां भूकम्प आने लगे, तो देवता ऋषि वशिष्ठ जी के पास गए। तब ऋषि ने समाधि में ध्यान कर देखा कि महादेव के यहां पर न होने के कारण अर्बुद नाग के हिलने-डूलने से ये भूकम्प आ रहे थे। तब यहां भोलेबाबा के अंगूठे को स्थापित किया गया। तभी से ये अर्बुदांचल पर्वत यहां अचल हो गया। जिसके कारण इस मंदिर का नाम आज भी अचलेश्वर है।

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