Pitru Paksha: पितृ पक्ष चल रहा है और इस पक्ष में हमारे संस्कृति में लोग अपने पितृ को पानी देते हैं. यह मान्यता है कि पितृ पक्ष में पानी देने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं. मान्यता यह है कि पूर्वज गंध रस के तत्व से प्रसन्न होते हैं. श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों का पिंडदान, तर्पण में विशेष तरह के फूलों का इस्तेमाल किया जाता है. जिसको काश का फूल का कहा जाता है.यह भी कहा जाता है अगर पूजा पाठ में काश के फूलों का प्रयोग न किया जाए तो व्यक्ति का श्राद्ध कर्म पूरा नहीं होता. तो आइए आपको बताते हैं कि श्राद्ध कर्म में काश के फूल का महत्व और कौन से फूल क तर्पण और पिंडदान में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
‘काश’ के फूल का महत्व
श्राद्ध की पूजा अन्य पूजा पाठ से काफी अलग माना जाता है. श्राद्ध की पूजा में कुछ बातों का विशेष ख्याल रखा जाता है क्योंकि ये पूरी तरह मृत पूर्वज को समर्पित होती है. मान्यता है कि श्राद्ध कर्म में कास के फूलों का प्रयोग करना चाहिए. जिससे पूर्वज प्रसन्न होते हैं. पितृ पक्ष में कास के फूलों का खिलना शरद ऋतु के आगमन और देवताओं-पितरों के धरती पर आगमन की ओर इशारा करता है.
पितृ पक्ष की पूजा में इन फूलों का करें इस्तेमाल
पितृ पक्ष के श्राद्ध पूजा में चंपा, मालती,जूही और अन्य सफेद फूलों का इस्तेमाल शुभ माना जाता है. तर्पण के समय हाथ में जल, काले तिल और इनमें से एक फूल लेकर जल अर्पित करना चाहिए. इससे पूर्वज का भरपूर आशीर्वाद मिलता है.
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श्राद्ध में न करें इन फूलों का उपयोग
बेलपत्र, कदम्ब, करवीर, केवड़ा, मौलसिरी और लाल तथा काले रंग के फूल व उग्र गंध वाले श्राद्ध कर्म में पूरी तरह से वर्जित हैं. शास्त्रों के अनुसार पितृगण को ये फूल बिल्कूल पसंद नहीं है और बिना अन्न-जल ग्रहण किए अतृप्त होकर लौट जाते हैं. इससे परिजनों को भविष्य में कई तरह के परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है . इस बात का भी ध्यान रखें कि श्राद्ध कर्म में तुलसी और भृंगराज का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता हैं.
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