Odisha News: रथों पर सवार भगवान: पुरी रथ यात्रा की पौराणिक गाथा”।

पुरी, ओडिशा का एक पवित्र नगर, हर वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा के आयोजन से जीवंत हो उठता है। यह यात्रा न केवल धार्मिक भावना का प्रतीक है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत की एक अनमोल धरोहर भी है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस रथ यात्रा के पीछे की वास्तविक कहानी क्या है?

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Odisha News: पुरी रथ यात्रा की जड़ें भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं में छिपी हुई हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा मथुरा से द्वारका लौटे, तब उनकी बहन सुभद्रा ने जगन्नाथ पुरी जाने की इच्छा प्रकट की। कहा जाता है कि उनके इस यात्रा को रथ पर बैठकर पूरा किया गया था, और यही परंपरा आगे चलकर पुरी की “रथ यात्रा” बन गई।

एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार, महाराज इन्द्रद्युम्न ने भगवान विष्णु के दर्शन की तीव्र इच्छा के कारण पुरी में एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। भगवान ने उन्हें दर्शन देने के लिए जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रूप में नीम की लकड़ी से बने विग्रह में अवतरित होने का वचन दिया। यह विग्रह आज भी पुरी के श्रीमंदिर में स्थित है।

हर वर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को, भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ गुंडिचा मंदिर के लिए प्रस्थान करते हैं, जिसे उनकी मौसी का घर माना जाता है। यह यात्रा तीन विशाल रथों पर की जाती है –

भगवान जगन्नाथ का रथ: नंदीघोष

बलभद्र का रथ: तालध्वज

सुभद्रा का रथ: दर्पदलन

Odisha News: रथ यात्रा के दौरान, लाखों श्रद्धालु भगवान के रथ की रस्सी खींचते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इससे पुण्य की प्राप्ति होती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।

यह यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि भक्ति, समर्पण और जन-एकता का प्रतीक भी है। भगवान स्वयं भक्तों के बीच आते हैं, जिससे यह उत्सव और भी विशेष बन जाता है।

पुरी रथ यात्रा की यही विशेषता है – भगवान का भक्तों के पास आना, और संपूर्ण भारत का एक उत्सव में रंग जाना।

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