International News: ट्रंप का विदेशी छात्रों पर नया आदेश: हार्वर्ड विश्वविद्यालय पर प्रभाव और अतिसत्तात्मक रवैया

डोनाल्ड ट्रंप, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और 2024 के संभावित रिपब्लिकन उम्मीदवार, एक बार फिर अपने विवादास्पद फैसलों के लिए चर्चा में हैं। इस बार उन्होंने 2025-26 के शैक्षणिक सत्र के बाद से अमेरिका के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्रों के प्रवेश को सीमित करने का प्रस्ताव रखा है, जिसमें हार्वर्ड विश्वविद्यालय प्रमुखता से शामिल है। ट्रंप का यह निर्णय शिक्षा जगत, खासकर भारतीय और अन्य अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए गहरी चिंता का विषय बन गया है।

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क्या है ट्रंप का निर्णय?:
ट्रंप ने एक भाषण में कहा कि अमेरिका को पहले अपने नागरिकों को उच्च शिक्षा के संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए। उनके अनुसार, “विदेशी छात्र अमेरिका में आते हैं, उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं, और फिर या तो यहीं बस जाते हैं या अपने देश लौटकर अमेरिकी तकनीक का लाभ उठाते हैं।” इस सोच के आधार पर उन्होंने हार्वर्ड, एमआईटी, स्टैनफोर्ड जैसे विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्रों के नामांकन पर सीमाएं तय करने का सुझाव दिया।

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हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, जो विश्वभर के प्रतिभाशाली छात्रों का केंद्र रही है, इस निर्णय से सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकती है। लगभग 20% छात्र हार्वर्ड में अंतरराष्ट्रीय पृष्ठभूमि से आते हैं, जिनमें बड़ी संख्या भारतीय, चीनी, कोरियन और यूरोपीय छात्रों की है। ट्रंप के प्रस्ताव से न केवल इन छात्रों के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा, बल्कि अमेरिका की वैश्विक शैक्षिक प्रतिष्ठा भी खतरे में पड़ सकती है।

ट्रंप का अतिसत्तात्मक दृष्टिकोण:
यह निर्णय ट्रंप के लगातार बढ़ते अतिसत्तात्मक रवैये को भी दर्शाता है। विदेशी छात्रों को शिक्षा से वंचित करना न केवल एक आर्थिक नुकसान है (क्योंकि अंतरराष्ट्रीय छात्र अमेरिका में सालाना अरबों डॉलर का योगदान करते हैं), बल्कि यह अमेरिका की ‘ग्लोबल लीडर’ छवि को भी चोट पहुंचाता है। ट्रंप का यह कदम ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत एक संकीर्ण दृष्टिकोण को दर्शाता है, जो विविधता और नवाचार के खिलाफ जाता है।

निष्कर्ष:
डोनाल्ड ट्रंप का विदेशी छात्रों को रोकने का निर्णय न केवल उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बाधा उत्पन्न करेगा, बल्कि अमेरिका की वैश्विक पहचान और शैक्षणिक नेतृत्व को भी कमजोर करेगा। यदि यह नीति लागू होती है, तो न केवल भारत बल्कि दुनिया भर के छात्रों के लिए अमेरिका का सपना अधूरा रह जाएगा। यह वक्त है जब अमेरिका को एक समावेशी और वैश्विक शिक्षा दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है, न कि सीमित सोच के साथ आगे बढ़ने की

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