
Bihar Voter List Revision: दस्तावेजी अनियमितताओं और विदेशी घुसपैठ से सियासी सरगर्मी तेज
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव 2025 को ध्यान में रखते हुए मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) तेजी से जारी है। इस प्रक्रिया के तहत जब चुनाव आयोग ने घर-घर जाकर मतदाता सत्यापन शुरू किया, तब कई क्षेत्रों से चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। रिपोर्ट्स के अनुसार, कुछ इलाकों में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों से आए नागरिकों के नाम भी मतदाता सूची में पाए गए हैं। यह न केवल राज्य की सुरक्षा के लिहाज़ से चिंता का विषय है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुद्धता पर भी सवाल खड़े करता है।
30 सितंबर को अंतिम मतदाता सूची होगी जारी
चुनाव आयोग के अनुसार, 1 अगस्त 2025 को प्रारंभिक मतदाता सूची सार्वजनिक की जाएगी। इसके बाद आपत्तियों के निपटारे की प्रक्रिया के पश्चात 30 सितंबर को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित होगी। सत्यापन के दौरान जिन नामों में विसंगतियां पाई जाएंगी, उन्हें सूची से हटाया जाएगा।
विपक्ष की नाराज़गी और आरोप
राजद नेता तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि मतदाता सूची को लेकर लोगों को भ्रमित किया जा रहा है। उन्होंने यह भी दावा किया कि अभी तक बड़ी संख्या में लोगों को इस प्रक्रिया की जानकारी ही नहीं दी गई है। तेजस्वी ने यह सवाल भी उठाया कि अब तक कितने फॉर्मों का सही तरीके से सत्यापन हुआ है, इसकी कोई पारदर्शिता नहीं है।
इसके अलावा उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आधार और राशन कार्ड को पहचान दस्तावेज के रूप में मान्यता देने के बावजूद आयोग ने इनका इस्तेमाल स्पष्ट रूप से निर्देशित नहीं किया है।
BLO द्वारा मांगे जा रहे दस्तावेज
बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) मतदाता सूची के अद्यतन के दौरान नागरिकों से विभिन्न दस्तावेज मांग रहे हैं, जिनमें शामिल हैं:
जन्म प्रमाण पत्र
स्थायी निवास प्रमाण
परिवार पहचान पत्र
पासपोर्ट
NRC से संबंधित दस्तावेज
जाति प्रमाण पत्र
शैक्षणिक प्रमाण पत्र
1987 से पूर्व के सरकारी दस्तावेज
निष्कर्ष
बिहार में मतदाता सूची को लेकर चल रही प्रक्रिया अब राजनीतिक बहस का विषय बन चुकी है। एक ओर चुनाव आयोग इसे निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया बता रहा है, वहीं विपक्ष इसे लोकतंत्र के लिए खतरा मान रहा है। 30 सितंबर को अंतिम सूची जारी होने के बाद यह मामला और भी राजनीतिक रंग ले सकता है और इसका सीधा असर राज्य की चुनावी रणनीति पर पड़ सकता है।