सेक्स ना करना बन सकता है तलाक का आधार, केस की सुनवाई पर कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला
कर्नाटक हाई कोर्ट ने हिंदू दंपत्ति के केस पर फ़ैसला सुनाया है, कि हिंदू मैरिज एक्ट के मुताबिक़, शादीशुदा जोड़े के बीच सेक्स नहीं होना, दंपत्ति के तलाक का आधार तो हो सकता है। लेकिन भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत इसे क्रूरता नहीं माना जाएगा। भारतीय कानून का प्रावधान हो या फिर अदालतों के फ़ैसले, दोनों के अनुसार कोई भी शादीशुदा रिश्तें जारी रखने में पति-पत्नी के बीच शारिरीक संबंधों का होना अहम माना जाता है। हालांकि, बहुत कानूनी विशेषज्ञ ये मानते हैं, कि इस क़ानूनी प्रावधान का इस्तेमाल अधिकतर पुरूष करते हैं। क्योंकि, आमतौर पर यह माना जाता है कि वास्तविक शादीशुदा जिंदगी में पति को यौन सुख देना, पत्नी का धर्म होता है। शादी के बाद महिलाओं को पति के साथ यौन संबंध बनाने की ज़िम्मेदारी पूरी करनी चाहिए।
शादी का संपूर्ण ना होना
वर्ष 2019 में कोर्ट में दायर एक मुकदमें में कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। जिसमें महिला की तरफ से कहा गया। कि वह शादी के बाद 28 दिनों तक अपने पति के साथ रही। लेकिन विवाहित जोड़े के बीच सेक्स नहीं हुआ। फरवरी 2020 में कोर्ट ने धारा 498ए लगाते हुए कहा गया. कि पति द्वारा पत्नी पर जुल्म करने का भी आधार माना जा सकता हैं।
सेक्स ना करना तलाक का आधार
कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, कि शादीशुदा जीवन में सेक्स नहीं होने को दो अलग-अलग तरीकों से देखा जाता है। अगर पति या पत्नी में से किसी को नपुंसकता का दोष है. जिसके कारण यौन संबंध नहीं बन पाते हैं। तो हिंदू मैरिज क़ानून के तहत ऐसी शादी को खत्म कर दिया जा सकता है. इसका मतलब यह है, कि पति या पत्नी में से कोई भी शादी को रद्द करने की मांग कर सकता है। लेकिन अगर शादी के बाद पति-पत्नी में शारीरिक संबंध स्थापित हो चुके हैं। लेकिन कुछ समय के बाद में पति या पत्नी में से कोई भी दूसरे को सेक्स क्रिया से दूर रखता है, तो उस स्थिति में कोई भी इस आधार पर तलाक़ की मांग कर सकता है। कि पार्टनर ने जानबूझ कर ऐसा कृत्य किया। जिससे वह यौन संतुष्टि प्राप्त करने से वंचित रहा/रही।