AAP-CONGRESS BREAKUP: आम आदमी पार्टी का INDIA ब्लॉक से बाहर होना: पंजाब की मजबूरी या गुजरात की रणनीति?

देश की राजनीति में एक बड़ा मोड़ उस समय आया जब आम आदमी पार्टी (AAP) ने विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक से अपने औपचारिक एग्जिट का ऐलान कर दिया। इस निर्णय ने न केवल विपक्षी एकता पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह भी चर्चा का विषय बन गया है कि क्या यह फैसला पंजाब की राजनीतिक मजबूरियों के चलते लिया गया या गुजरात में पार्टी को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा है।

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AAP-CONGRESS BREAKUP: क्या है मामला?
राज्यसभा सांसद और आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय सिंह ने स्पष्ट रूप से कहा कि अब AAP इंडिया ब्लॉक का हिस्सा नहीं है। उनका कहना है कि यह गठबंधन विशेष रूप से लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बना था। चुनाव के बाद AAP ने हरियाणा और दिल्ली में विधानसभा चुनाव तथा पंजाब और गुजरात में उपचुनाव अकेले ही लड़े। ऐसे में उनका कहना है कि स्वाभाविक रूप से AAP अब इस गठबंधन से बाहर है।

पंजाब की मजबूरी?
पंजाब में आम आदमी पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है। कांग्रेस, जो INDIA ब्लॉक की प्रमुख सदस्य पार्टी है, वही राज्य में AAP की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भी है। ऐसे में दोनों दलों के बीच राज्यस्तरीय टकराव स्वाभाविक है। कांग्रेस और AAP के बीच कई मुद्दों पर तीखी बयानबाजी और राजनीतिक लड़ाई रही है। इसलिए पंजाब की राजनीति को देखते हुए AAP के लिए गठबंधन में बने रहना व्यावहारिक नहीं लग रहा था।

गुजरात की रणनीति?
AAP गुजरात में अपने आधार को मजबूत करने की दिशा में सक्रिय है। वहां बीजेपी की मजबूत पकड़ है और कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है। ऐसे में AAP खुद को विपक्ष के विकल्प के रूप में पेश करना चाहती है। यदि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन में रहती, तो गुजरात में खुद को स्वतंत्र और मज़बूत विकल्प के रूप में स्थापित करना मुश्किल हो सकता था।

AAP-CONGRESS BREAKUP: आगे की राह:
हालांकि संजय सिंह ने यह भी स्पष्ट किया कि AAP संसदीय मुद्दों पर TMC और DMK जैसी पार्टियों के साथ सहयोग करती रहेगी। इसका मतलब यह है कि पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी भूमिका में जरूर है, लेकिन संगठित गठबंधन का हिस्सा नहीं रहना चाहती।

निष्कर्ष
आम आदमी पार्टी का इंडिया ब्लॉक से बाहर आना एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा दिखता है जिसमें पंजाब की राजनीतिक ज़मीन और गुजरात में संगठन विस्तार दोनों शामिल हैं। यह निर्णय आने वाले विधानसभा और लोकसभा उपचुनावों में पार्टी की दिशा और दशा तय करने में अहम साबित हो सकता है।

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