वट सावित्री व्रत 2025: अखंड सौभाग्य का प्रतीक, आस्था और प्रेम की अमर गाथा
वट सावित्री व्रत भारतीय संस्कृति में पति की दीर्घायु, सुख और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रती महिलाओं द्वारा किए जाने वाला एक अत्यंत पवित्र व्रत है। यह व्रत विशेष रूप से उत्तर भारत, महाराष्ट्र, गुजरात और बिहार में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
व्रत का महत्व और पौराणिक कथा: वट सावित्री व्रत का नाम ‘सावित्री’ और ‘वट’ यानी पीपल के वृक्ष से जुड़ा है। इस दिन सावित्री देवी द्वारा यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों को वापस लाने की प्रेरणादायक कथा को याद किया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि सावित्री ने अपने अद्भुत साहस, भक्ति और प्रेम के बल पर मृत्यु के देवता को भी पराजित कर दिया और अपने पति के जीवन की रक्षा की। इसी प्रेम, समर्पण और शक्ति की स्मृति में विवाहित महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं।
इस दिन महिलाएं वट (बड़) वृक्ष के नीचे पूजा करती हैं, पीले या लाल वस्त्र पहनकर सोलह श्रृंगार करती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं। वे वट वृक्ष की पूजा कर उसके चारों ओर कच्चा धागा (सूत) लपेटते हुए परिक्रमा करती हैं।
व्रत का उद्देश्य: इस व्रत का उद्देश्य न केवल पति की लंबी उम्र और पारिवारिक सुख की कामना करना है, बल्कि यह नारी शक्ति, दृढ़ संकल्प और प्रेम की महानता को दर्शाने का प्रतीक भी है।
व्रत की तिथि और मुहूर्त: वर्ष 2025 में वट सावित्री व्रत सोमवार, 26 मई 2025 को मनाया जाएगा।
पूजा का शुभ मुहूर्त: पूजन मुहूर्त: प्रातः 05:27 बजे से दोपहर 11:48 बजे तक
अवधि: लगभग 6 घंटे 21 मिनट
अमावस्या तिथि आरंभ: 25 मई 2025 को रात्रि 09:23 बजे
अमावस्या तिथि समाप्त: 26 मई 2025 को रात्रि 11:56 बजे
यह व्रत नारी शक्ति, आस्था और प्रेम की जीवंत मिसाल है जो पीढ़ियों से भारतीय संस्कृति में अपना विशेष स्थान बनाए हुए है