Why gay law is necessary in India? समलैंगिग कानून भारत में क्यों जरूरी ?

सवाल खड़ा होता है कि आखिर अब अन्य देशों के अलावा भारत में इस कानून की क्या जरूरत आन पड़ी है हालाकि भारत में 377 पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले ही साल फैसला देकर समलैंगिग सांबंधों को आपराधिक श्रेणी से बाहर किया था

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Same Sex Marriage Law : भारत (India) में समलैंगिग विवाह (same sex marriage) को लेकर इन दिनों हर गली नुक्कड़ में चर्चाएं तेज हैं कि आखिर समलैंगिग विवाह को लेकर कोर्ट (Court) क्या फैसला सुनाएगा हालाकि कोर्ट की तरफ से इसे मान्यता न देकर कुछ अधिकारों को देने की बातें जरूर कही जा रही हों लेकिन ऐसे में ये सवाल खड़ा होता है कि आखिर अब अन्य देशों के अलावा भारत में इस कानून की क्या जरूरत आन पड़ी है हालाकि भारत में 377 पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले ही साल फैसला देकर समलैंगिग सांबंधों को आपराधिक श्रेणी से बाहर किया था लेकिन 27 जून 1969 समलैंगिंग अधिकारों के लिए जंग शुरू हुई थी. जब न्यूयार्क में समलैंगिग का समूह पुलिस के साथ भिड़ गया था. उस संघर्ष को स्टोनवॉल इन संघर्ष के नाम से जाना जाता है

भारत में क्यों कानून की आवश्यकता ?

मान्यता न मिलना भेदभाव की मुख्य वजह

थर्ड जेंडर (Third Gender)  के लिए कानूनी मान्यता जरूरी

कानूनी मान्यता के साथ मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)  जरूरी

विवाह का अधिकार नहीं मिलने से समलैंगिकों (Homosexuals) के दूसरे अधिकार प्रभावित

सरकारी नौकरियों में नहीं मिलता समानता का अधिकार

 

भारत में समलैंगिक संबंधों (Gay Relationships) को कानूनी करार दिए जाने की बात ज़्यादा पुरानी नहीं है. सेक्शन 377 पर पिछले साल ही सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा था कि समलैंगिक संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं हैं. इससे पहले जब 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शन 377 के सिलसिले में विचार किए जाने की मंज़ूरी दी थी और फैसला आने में वक्त था, तब भारत में पहली गे शादी हुई थी. ऐसे में जब इसे लेकर कानून लाने की बात हो रही है तो चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों भारत में इसे लेकर कानून की आवश्यकता पड़ रही है.

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