सनातन धर्म में चातुर्मास को बेहद ही खास माना जाता है। जो पूरे चार माह की अवधि तक मनाया जाता है और यह आषाढ़ माह में पड़ने वाली देवशयनी एकादशी के अगले दिन से ही आरंभ हो जाता है जिसका समापन कार्तिक माह के देवोत्थान एकादशी पर होता है। इस दौरान शुभ व मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है ऐसे में किसी भी तरह का शुभ कार्य इस दौरान नहीं किया जाता है। चातुर्मास को पूरे चार महीनों तक देवी देवताओं की आराधना व पूजन करने के लिए उत्तम माना जाता है। इस बार चातुर्मास का आरंभ 30 जून से हो रहा है जिसका समापन 23 नवंबर को हो जाएगा।
ये महीने प्रार्थना, अनुष्ठान और पूजा के लिए समर्पित होते हैं लेकिन इस दौरान शादी विवाह, गृहप्रवेश और अन्य मांगलिक कार्यों को करना वर्जित माना जाता है। पंचांग के अनुसार चातुर्मास का आरंभ आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से हो जाता है और समापन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर होता है इस दौरान कई सारे नियमों का पालन करना भी जरूरी होता है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे हैं कि चार महीनों के चातुर्मास में किन नियमों का पालन करना लाभकारी है।
चातुर्मास के नियम—
आपको बता दें कि चातुर्मास के पूरे चार महीनों तक विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, जनेउ, भूमि पूजन, तिलोकोत्सव समेत अन्य शुभ व मांगलिक कार्यों को नहीहं करना चाहिए। इस दौरान थाली में भोजन ना करके पत्तल में भोजन करना उत्तम माना जाता है। इसी के साथ इन चार महीनों में भूमि पर ही सोना चाहिए। ऐसा करने से देवी देवताओं की कृपा बरसती है। चातुर्मास में तुलसी पूजन शुभ माना जाता है ऐसे में संध्याकाल में तुलसी के नीचे घी का दीपक जरूर लगाएं। ऐसा करने से सुख सौभाग्य बढ़ता है।
चातुर्मास में भूलकर भी तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस दौरान विष्णु और लक्ष्मी जी की पूजा फलदायी होती है। चातुर्मास के दिनों में झूठ बोलना, विवाद आदि करना अच्छा नहीं माना जाता है, ऐसा करने से श्री हरि की कृपा प्राप्त नहीं होती है इसके अलावा इस दौरान तेल, बैंगन, साग, शहद, मूली, परवल, गुड़ आदि का भी सेवन नहीं करना चाहिए।