Supreme Court’s Rebuke: दिव्यांगों पर मज़ाक करना पड़ा भारी, स्टैंड-अप कॉमेडियन समय रैना को नोटिस

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक बेहद संवेदनशील मामले की सुनवाई हुई, जिसमें स्टैंड-अप कॉमेडियन समय रैना द्वारा दिव्यांग व्यक्तियों पर किए गए मज़ाक को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। यह मामला कॉमेडी और सामाजिक मर्यादा की सीमाओं के बीच संतुलन की आवश्यकता को उजागर करता है।

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Supreme Court’s Rebuke: कॉमेडियन समय रैना द्वारा मंच पर दिए गए कथित रूप से आपत्तिजनक और अपमानजनक टिप्पणियों को लेकर देश के सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुई। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाला बागची की पीठ द्वारा की गई। कोर्ट ने रैना की टिप्पणियों को “परेशान करने वाला” करार देते हुए उनके व्यक्तिगत आचरण की जांच पर बल दिया।

न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हास्य और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह अर्थ नहीं है कि समाज के संवेदनशील वर्गों, विशेषकर दिव्यांगजनों, की गरिमा को ठेस पहुंचाई जाए। अदालत ने रैना को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है और आगामी सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश भी दिया।

यह मामला केवल एक व्यक्ति या कॉमेडी एक्ट तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि क्या कॉमेडी के नाम पर किसी की भावनाओं को आहत करना अभिव्यक्ति की आजादी के अंदर आता है? भारत जैसे विविधता से भरे समाज में जहां अलग-अलग वर्गों की भावनाएं जुड़ी होती हैं, वहां कलाकारों और कॉमेडियनों की ज़िम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है।

Supreme Court’s Rebuke: दिव्यांगों के अधिकारों की रक्षा करना सिर्फ सरकार या संस्थाओं की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर नागरिक की नैतिक ज़िम्मेदारी भी है। इस मामले से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय न्यायपालिका सामाजिक मूल्यों और गरिमा की रक्षा को लेकर गंभीर है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाली सुनवाई में समय रैना क्या सफाई देते हैं और यह मामला कॉमेडी और संवेदनशीलता के बीच किस प्रकार की नई परिभाषा तय करता है।

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