किसी भी देश का राष्ट्रपति बनने के लिए आपको वहां की जनता से जुड़ाव होना ज़रूरी होता है। शायद ऐसा ही कुछ हुआ है तुर्की में जहां ग्यारहवीं बार रेसेप तैयप एर्दोगन फिर राष्ट्रपति बन गए। चुनाव के दूसरे दौर में उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी कमाल कलचदारलू को करीब चार फीसदी मतों के अंतर से हरा दिया। देश के चुनाव बोर्ड की ओर से ऑनलाइन दी जा रही जानकारी के अनुसार 99 फीसदी मतपेटियों के मतों की गिनती के बाद एर्दोगन को 52.08 फीसदी जबकि कमाल को 48.92 फीसदी वोट मिले। राष्ट्रपति चुने जाने के लिए उम्मीदवार को 50 फीसदी से अधिक मत पाना ज़रूरी माना जाता है। इसी कड़ी में एर्दोगन सफल रहे।
एर्दोगन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पिछले दो दशक से तुर्किये की सत्ता पर काबिज हैं और नतीजों ने दिखाया है कि उनकी लोकप्रियता आज भी कायम है। विपक्षी उम्मीदवार कमाल ने देश में सत्ता और व्यवस्था परिवर्तन के वादों के साथ चुनाव लड़ा था, लेकिन मामूली अंतर से जीतने से चूक गए। एर्दोगन तुर्किये की रूढ़ीवादी और धार्मिक जस्टिस एंड डेवेलपमेंट पार्टी (एकेपी) के अध्यक्ष हैं।
कहीं ना कहीं अगर देखा जाए तो आज से तीन महीने पहले आए तुर्किए के भूकंप ने वहां की जनता को एर्दोगन से जोड़कर रखा क्योंकि वो हर लिहाज़ से तुर्कीवासियों की मदद के लिए लगे हुए थे। शायद तुर्किए के लोगों के लिए उनका ये प्यार काम आ गया जो उनकी जीत बनकर उभरा।
आपको बता दें कि तुर्किये यूरोप और एशिया के बीच स्थित है और नाटो का मजबूत सदस्य है। यहां सत्ता पर कौन काबिज है इसका वैश्विक प्रभाव होता है। एर्दोगन की सरकार ने पिछले दिनों स्वीडन के नाटो में शामिल होने को वीटो कर दिया था और वह रूस से मिसाइल रक्षा प्रणाली भी खरीद रहा है। कश्मीर मुद्दे को लेकर एर्दोगन पाकिस्तान के पाले में खड़े दिखते रहे हैं।
पूरे यूरोप में 34 लाख तुर्किये वासियों ने अपने आप को मतदाता के तौर पर रजिस्टर कराया था। इनमें सबसे ज्यादा लगभग 15 लाख जर्मनी के हैं। उसके बाद फ्रांस का नंबर है, जहां तकरीबन चार लाख तुर्किये वासियों ने मतदान के लिए अपना नाम दर्ज कराया था। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, प्रवासी तुर्किये वासियों में इस चुनाव को लेकर गहरा विभाजन देखा गया। बड़ी संख्या में इन लोगों ने राष्ट्रपति एर्दोगन के पक्ष में मतदान किया, जबकि उनके विरोधी कमाल कलचदारलू को वोट देने वाले मतदाताओं की संख्या भी अच्छी-खासी रही।