Shocking Incident: जिस पिल्ले को बचाया, उसी ने छीनी जान: कबड्डी के उभरते सितारे बृजेश सोलंकी की रेबीज से क आलोपी”

अप्रैल का महीना था जब बुलंदशहर के छोटे से गाँव फराना में बृजेश सोलंकी (22) ने गाँव की नाली में डूबते एक पिल्ले को बचाया। उसकी इंसानियत भरी पहल की एक हल्की मुस्कान की कीमत बड़ा भारी साबित हुई—पिल्ले के काटने के बाद उन्होंने ज़रा भी गंभीरता नहीं दिखाई और एंटी‑रेबीज़ टीका नहीं लगवाया।

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Shocking Incident: मेरी समझ में, झटपट में आई वह चोट उन्हें कबड्डी प्रैक्टिस में लगी मामूली चोट लगी। कोच और परिवार ने भी सोचा कि कोई सबूत नहीं—लेकिन यह निर्णय उन पर भारी पड़ा। 26 जून की वह सुबह जब बृजेश की कलाई सुन्न हो गई और दोपहर तक शरीर में कमजोरी–ठंड–पानी से डर जैसे हाइड्रोफोबिया के लक्षण दिखने लगे, तब जाकर स्थिति नाजुकता का एहसास हुआ।

 

परिवार ने उन्हें खुर्जा, अलीगढ़, दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में दिखाया—मगर इलाज के लिए मना कर दिया गया। अंततः नोएडा के एक निजी अस्पताल में रेबीज की आशंका जताई गई। वहाँ भी कोई राहत नहीं मिली। 27–28 जून की रात में उम्र के इस सबसे उज्जवल सितारे की आखिरी साँस गांव लौटते हुए रुक गई।

उपलब्धियाँ और भविष्य की धड़कन
इस साल फरवरी–मार्च में उन्होंने राज्य स्तरीय कबड्डी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता।

डेढ़ महीने तक प्रो कबड्डी लीग 2026 की तैयारी कर रहे थे।

उनके पिता कारपेंटर नहीं, कृषक हैं, तो माँ गृहिणी। तीन बड़े भाई—शिवम (27, कबड्डी प्लेयर), संदीप (29, ड्राइवर) और एक बड़ी बहन—उनके पीछे परिवार की एकमात्र उम्मीद बची थी।

Shocking Incident: परिवार पर असर और सरकारी प्रतिक्रिया
बृजेश की मृत्यु के बाद गाँव–परिवार में अपार शोक और गुस्सा फैल गया। भाजपा महिला नेता ने ₹50,000 की आर्थिक सहायता दी, स्वास्थ्य विभाग ने गाँव में 29 लोगों को रैबीज़ की वैक्सीन लगवाई और जागरूकता अभियान भी शुरू किया

। परिवार सरकार से नौकरी व स्थायी मदद की मांग कर रहा है ।

सीख और संदेश
यह दुखद घटना एक प्रबल चेतावनी है: किसी भी जानवर, चाहे छोटा पिल्ला क्यों न हो, काटे—तो जल्दी उपचार और एंटी‑रेबीज़ टीका जरूरी है। बृजेश की मेहनत और माँग्यता ने साबित किया कि अगर समय रहते इलाज हो जाता, तो यह भविष्य में एक देश का प्रतिनिधि बनने वाला खिलाड़ी हो सकता था।

उनकी यह यात्रा हमें यह बताती है कि इंसानियत की मिसाल कभी समस्या नहीं होती—लेकिन उसके बाद मिलने वाला इलाज और जागरूकता अत्यंत जरूरी है।

बृजेश की इस कहानी को पढ़कर हम सबको एक सबक मिलता है—दयालुता के साथ सावधान भी रहना ज़रूरी है। उनकी शौर्य यात्रा के लिए श्रद्धांजलि।

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