Sawan 2024: सावन का महीना चल रहा है, और हर तरफ शिव भक्ति का माहौल छाया हुआ है। इस बार सावन मास में 75 साल बाद एक दुर्लभ संयोग बन रहा है। सावन मास की शुरुआत सोमवार से हुई और इसका समापन भी सोमवार को होगा। इस बार सावन में पाँच सोमवार का व्रत भी किया जा रहा है। दिव्य ऊर्जा से जुड़ने के लिए सावन का महीना बेहद अनुकूल माना जाता है। इस महीने भक्त शिवालयों में जाकर शिवलिंग की पूजा अर्चना करते हैं। सावन मास के मौके पर, आज हम आपको भगवान शिव के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो रहस्य और चमत्कारों से भरा पड़ा है। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के लाखामंडल शिव मंदिर के बारे में, जहाँ कहा जाता है कि मुर्दे भी जिंदा हो जाते हैं। आइए जानते हैं उत्तराखंड के इस अनोखे शिव मंदिर के बारे में, जहाँ विधि का विधान भी पलट सकता है।
लाखामंडल शिव मंदिर
पापमुक्ति का पवित्र स्थल देहरादून से लगभग 128 किलोमीटर दूर, लाखामंडल में स्थित महादेव का यह मंदिर, यमुना नदी के तट पर बर्नीगाड़ के पास स्थित है। यह मंदिर अपनी प्राचीनता और पवित्रता के लिए प्रसिद्ध है। यहां आने वाले भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में पूजा करने से पापों से मुक्ति मिलती है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसमें पूरा संसार दिखाई देता है। सावन मास में यहां भक्तों की भारी भीड़ होती है। मंदिर के आसपास गुफाएं और प्राचीन अवशेष हैं जो इस जगह को और भी खास बनाते हैं। यह मंदिर अपने मनमोहक दृश्यों और आध्यात्मिक वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। अगर आप शांति और आध्यात्मिक अनुभव की तलाश में हैं, तो महादेव का लाखामंडल मंदिर आपके लिए एक आदर्श जगह है।
12वीं-13वीं शताब्दी में बना था मंदिर
इतिहास और महत्व भगवान शिव का यह नागर शैली का मंदिर लगभग 12वीं-13वीं शताब्दी में बनाया गया था। यह मंदिर न केवल अपनी सुंदरता और स्थापत्य शैली के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए भी जाना जाता है। यहां पर खुदाई करते समय विभिन्न आकार के और विभिन्न ऐतिहासिक काल के कई शिवलिंग मिले हैं। इन शिवलिंगों की खोज ने इस स्थान को एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल के रूप में स्थापित किया है। इसी वजह से इस शिव मंदिर को आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया – ASI की निगरानी में रखा गया है।
परिस्थितियों के अनुसार, कभी-कभी इस जगह को खाली भी करवा जाता है ताकि इसकी सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित हो सके। मंदिर से कुछ ही दूरी पर लाक्षागृह गुफा भी है, जहां शेषनाग के फन की नीचे स्थापित शिवलिंग पर पानी टपकता रहता है। यह गुफा शिव भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है, और यहां शिव पूजा का विशेष महत्व है। यह मंदिर न केवल धार्मिक केंद्र है, बल्कि इतिहास और संस्कृति के लिए भी महत्वपूर्ण है। यहां के शिवलिंग, गुफाएं और अन्य अवशेष इस क्षेत्र के इतिहास को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
लाक्षागृह का हुआ था निर्माण
माना जाता है कि महाभारत काल में पांडवों को जलाकर मारने के लिए यहां लाक्षागृह का निर्माण किया था लेकिन वे कौरवों के षड़यंत्र से बच निकलने में कामयाब हो गए थे। अपने अज्ञातवास के दौरान युधिष्ठिर ने यहां शिवलिंग की स्थापना की थी। मंदिर में आज भी आप उस शिवलिंग को देख सकते हैं। हालांकि, एक अन्य मान्यता के अनुसार लाक्षागृह यूपी में बताया जाता है। महाभारत की एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध खत्म हो जाने के बाद जब पांडव हिमालय आए तो उन्होंने मंदिर का निर्माण करवाया था। पांडवों ने यहां पर एक लाख शिवलिंग की स्थापना की थी, इस वजह से इस मंदिर का नाम लाखामंडल रखा गया था।
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