
Political Reunion: 20 साल बाद एक मंच पर ठाकरे बंधु: मराठी अस्मिता की नई शुरुआत”
महाराष्ट्र की राजनीति में 5 जुलाई 2025 का दिन एक ऐतिहासिक मोड़ बन गया, जब दो दशकों के बाद ठाकरे बंधु—राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे—एक ही मंच पर साथ नजर आए। यह विशेष अवसर ‘मराठी विजय दिवस’ के रूप में वर्ली के NSCI डोम में मनाया गया, जिसमें मराठी भाषा और अस्मिता के समर्थन में रैली आयोजित की गई। इस रैली को लेकर राजनीतिक और सामाजिक हलकों में खासा उत्साह देखा गया, क्योंकि यह न केवल भाषायी अधिकारों की जीत थी, बल्कि एक लंबे समय से बिछड़े ठाकरे परिवार की एकता की झलक भी दिखाती थी।
Political Reunion: यह आयोजन तब सामने आया जब महाराष्ट्र सरकार द्वारा हिंदी को कक्षा 1 से तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने का निर्णय लिया गया था। इस फैसले का जबरदस्त विरोध हुआ, खासकर शिवसेना (उद्धव गुट) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) की ओर से। राज और उद्धव ठाकरे दोनों ने इस निर्णय के खिलाफ आवाज बुलंद की, और विरोध के स्वर में एकजुट होकर एक साझा मंच से जनता को संबोधित करने का निर्णय लिया। इससे पहले 29 जून को सरकार ने भारी जनदबाव के चलते यह विवादास्पद GR वापस ले लिया, जिसे ठाकरे बंधुओं ने “जनशक्ति की जीत” बताया।
इस रैली में एनसीपी नेता सुप्रिया सुले ने भी हिस्सा लिया और ठाकरे बंधुओं से पहले मंच को संबोधित किया। पूरे आयोजन में कोई भी राजनीतिक पार्टी का झंडा या चुनाव चिन्ह नहीं दिखा, बल्कि केवल महाराष्ट्र का नक्शा और “मराठी विजय” जैसे भावनात्मक प्रतीकों का प्रयोग किया गया। राज ठाकरे ने कहा कि अब महाराष्ट्र को कोई भी तिरछी नजर से देखने की हिम्मत नहीं करेगा, वहीं उद्धव ठाकरे ने केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाते हुए मराठी स्वाभिमान की रक्षा की बात दोहराई।
Political Reunion: इस रैली से एक बड़ा राजनीतिक संकेत भी निकाला जा रहा है। 20 वर्षों की दूरी के बाद ठाकरे बंधुओं का एक मंच पर आना क्या आने वाले बीएमसी चुनावों में किसी बड़े गठबंधन का इशारा है? क्या मराठी मानुष की राजनीति को इससे नई ऊर्जा मिलेगी? और क्या यह एक स्थायी एकता का संकेत है या केवल सांस्कृतिक मंच तक सीमित है? इन तमाम सवालों के बीच एक बात साफ है—यह दिन महाराष्ट्र की राजनीति और मराठी अस्मिता के लिए एक नई शुरुआत का प्रतीक बन गया है।