श्रीनगर में 34 साल बाद निकाला गया मुहर्रम का जुलूस, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा भी हुए शामिल
कश्मीर घाटी में करीब 34 साल के बाद बिना किसी प्रतिबंध के मुहर्रम का जुलूस (Muharram Procession) निकाला गया। जुलूस से मौके पर जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा यौम-ए-आशूरा के जुलूस में खुद भाग लेने के लिए श्रीनगर पहुंचे. उपराज्यपाल मनोज सिन्हा शहर के पुराने इलाके बुट्टा कदल में सैकड़ों शिया मुसलमानों शोक जुलूस के कार्यक्रम में शामिल हुए। घाटी में वर्ष 1989 में बिगड़े हालातों की वजह से जुलूस निकालने की इजाजत नहीं मिलती थी। इसी बीच एल.जी सिन्हा कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच श्रीनगर पहुंचे. इस दौरान उन्होंने शोक मनाने वाले शिया मुसलमानों से मुलाकात की और वहां पर अपने विचारों का आदान-प्रदान भी किया। वहीं शिया समुदाय के लोगों ने 10वीं मुहर्रम के जूलूस की अनुमति देने पर आभार व्यक्त किया।
क्यों निकाला जाता है मुहर्रम का जुलूस
मुहर्रम इस्लाम के सबसे पवित्र महीनों में से एक माना जाता है। इस महीने में दुनियाभर के शिया मुस्लमान इमाम हुसैन (एएस) की शहादत पर शोक व्यक्त करने के लिए जुलूस निकालते हैं। जो इराक में कर्बला की लड़ाई के दौरान 680 ईस्वी में शहीद हो गए थे। श्रीनगर में प्रतिबंध लगाने 34 साल बाद अब फिर से इसकी शुरूआत हुई। हालांकि, पारंपरिक आशूरा जुलूस का मार्ग, जो लाल चौक में आभीगुजर से शुरू होकर पुराने श्रीनगर शहर के जदीबल में समाप्त होता था, 1989 में बुट्टा कदल से शुरू होकर जदीबल पर समाप्त होने वाले वर्तमान मार्ग से छोटा कर दिया गया था. पुराने मार्गों पर इसकी अनुमति नहीं दी गई थी।
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उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का बयान
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने हजरत इमाम हुसैन (एएस) और कर्बला के शहीदों के बलिदान को याद किया। उन्होंने कहा, कि सरकार शिया समुदाय की भावना का सम्मान करती है। वहीं मनोज सिन्हा के आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा, कि शांतिपूर्वक निकाला गया मुहर्रम का जूलूस बदलते कश्मीर की भावना को दर्शाता है।
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