Language Dispute: क्या सत्ता में बैठा नेता हिंसा का लाइसेंस ले सकता है? संजय गायकवाड़ की करतूत पर उठे सवाल”

मुंबई की सियासी फिजाओं में एक बार फिर गर्मी तब आ गई जब शिवसेना (शिंदे गुट) के विधायक संजय गायकवाड़ ने एक कैंटीन कर्मचारी को थप्पड़ मार दिया। घटना का कारण बेहद सामान्य था—दाल में स्वाद नहीं था या कथित रूप से वह ‘सड़ी हुई’ थी। लेकिन जिस तरह विधायक ने बिना किसी हिचकिचाहट के उस कर्मचारी पर हाथ उठाया, उसने सत्ता के मद में चूर राजनीति के घिनौने चेहरे को उजागर कर दिया।

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Language Dispute: सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि गायकवाड़ ने इस कृत्य पर कोई पछतावा नहीं जताया। उल्टा उन्होंने बयान देते हुए कहा कि “मैंने इंसाफ किया है, मैं योद्धा हूं।” अब सवाल यह उठता है—क्या सत्ता में बैठा हर नेता कानून से ऊपर है? क्या जनता के सेवक कहलाने वाले जनप्रतिनिधि को किसी पर हाथ उठाने का अधिकार सिर्फ इसलिए मिल जाता है क्योंकि वह विधायक है?

यह कोई पहला मौका नहीं है जब संजय गायकवाड़ विवादों में आए हों। इससे पहले उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को अपंग बनाने पर 11 लाख रुपये देने की पेशकश की थी, और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भी धमकी दे चुके हैं। ऐसे में यह सवाल और गहरा हो जाता है कि यह राजनीतिक अहंकार आखिर कहां रुकेगा?

आज जब देश संविधान और कानून के अनुसार चलता है, तब किसी जनप्रतिनिधि द्वारा खुलेआम हिंसा करना, और उस पर गर्व करना न केवल शर्मनाक है बल्कि लोकतंत्र के मूल्यों के खिलाफ भी है। सत्ता का मतलब सेवा है, दबंगई नहीं।

क्या यह वही “जनसेवा” है जिसके नाम पर नेता वोट मांगते हैं?

Language Dispute: जनता को अब यह सोचने की जरूरत है कि क्या हम ऐसे लोगों को वोट देकर सत्ता में बिठा रहे हैं जो कानून के रक्षक होने की बजाय, खुद ही कानून तोड़ने पर उतर आए हैं? लोकतंत्र में हिंसा और तानाशाही की कोई जगह नहीं होनी चाहिए, चाहे वह किसी भी पार्टी का नेता क्यों न हो।

निष्कर्षतः यह वक्त है जब जनता को भी अपनी ज़िम्मेदारी समझनी होगी और ऐसे नेताओं को करारा जवाब देना होगा—बोलकर नहीं, वोट से।

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