Jagannath Rath Yatra: ओडिशा के पुरी धाम में इस वक्त रथयात्रा की तैयारियां जारी हैं रथयात्रा का आयोजन आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को होता है इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ श्रीमंदिर से निकलकर भ्रमण के लिए जाते हैं उनका यह भ्रमण कार्यक्रम ही रथयात्रा कहलाता है, जिसे श्रद्धालु बहुत जोर-शोर से मनाते हैं और उनकी आकांक्षा होती है कि वह भी भगवान के रथ को खींचने का सौभाग्य प्राप्त कर सकें।
108 घड़े के जल से स्नान करते हैं भगवान
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को जब गर्मी बेहद तेज होती है उस दिन देव प्रतिमाओं को 108 घड़े के जल से स्नान कराया जाता है इस स्नान के बाद तीनों देवता बीमार पड़ जाते हैं और फिर वह एकांतवास में चले जाते हैं। एकांतवास की इस प्रक्रिया को पुरी में ‘अनासरा’ कहते हैं इन 15 दिनों में देव विग्रहों के दर्शन नहीं होते हैं 15 दिनों के बाद जब जगन्नाथ जी ठीक होते हैं तब उस दिन ‘नैनासार उत्सव’ मनाया जाता है। इस दिन भगवान का फिर से श्रृंगार किया जाता है, उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और इसके बाद वह भ्रमण के लिए तैयार होते हैं।
भगवान क्यों पड़ते हैं बीमार?
यहां सवाल उठता है कि क्या भगवान भी बीमार पड़ते हैं? लेकिन क्यों और कैसे? इन सवालों के पीछे की वजह एक कथा है, जगन्नाथ प्रभु की महिमा में यह जनश्रुति काफी प्रचलित है बहुत पहले की बात है ओडिशा के पुरी क्षेत्र में एक भक्त माधव दास रहते थे वह रोज ही भगवान की पूजा करते थे, प्रसाद में जो मिलता उसी से जीवनयापन करते थे और सादा जीवन जीते थे। एक बार वह बीमार पड़े उन्हें तेज बुखार हो गया वह अकेले थे तो कोई उनकी सेवा के लिए नहीं था फिर भी उन्होंने अपनी भक्ति में कोई कमी नहीं की लोग उन्हें सलाह देते थे कि वैद्य से मिलो, औषधि लो, लेकिन उपचार के लिए लेकर कोई नहीं जाता था।
माधवदास भी कहते कि जब भगवान मेरा ख्याल रख रहे हैं तो मुझे किसी की क्या जरूरत लेकिन, एक दिन बीमारी से कमजोर माधव दास बेहोश होकर गिर पड़े। तब अपने भक्त को संकट में देखकर भगवान खुद श्रीमंदिर से निकल आए और उनकी सेवा करने लगे जगन्नाथ जी उन्हें दवा देते, हाथ-पैर दबाते नहलाते, कपड़े बदलते और अपने हाथ से भोजन कराते थे। माधवदास जब ठीक होने लगे तब उन्होंने पहचाना कि भगवान खुद उनकी सेवा में लगे हैं यह देखकर माधव दास रो पड़े उन्होंने कहा कि आप मेरी सेवा करने क्यों आए?
आप मुझे तुरंत ठीक भी तो कर सकते थे तब जगन्नाथ जी ने कहा, मैं अपने भक्तों का साथ नहीं छोड़ता, लेकिन उनके कर्म में जो लिखा है वह तो होगा ही, लेकिन चलो, मैं एक काम करता हूं। अभी तुम्हारी बीमारी के 15 दिन और शेष हैं वह मैं अपने ऊपर ले लेता हूं उस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा थी। तब से यह परंपरा पुरी में चली आ रही है कहते हैं कि जैसे एक बार उन्होंने अपने भक्त माधवदास की पीड़ा अपने ऊपर ली थी, उसी तरह वह हर साल अपने भक्तों की पीड़ा हर लेते हैं, लेकिन भक्ति सच्ची होनी चाहिए।
देश और दुनिया की तमाम खबरों के लिए हमारा YouTube Channel ‘Saugandh TV’ को अभी subscribe करें, आप हमें FACEBOOK, और INSTAGRAM पर भी फॉलो कर सकते हैं।