आखिर क्यों रेल की पटरी में जंग नहीं लगता है? जानिए इसके पीछे का मुख्य वजह
Indian Railway: हिंदुस्तान में ट्रेन दुर्घटना के मामले पहले से काफी अधिक हो गए हैं. जिसके लिए रेलवे पटरियां भी कुछ हद तक जिम्मेदार हैं, क्योंकि वो अब पुराने हो चुके हैं. बता दें कि रेलवे पटरियां भारी गाड़ियों का भार सहते हुए यात्रियों और सामानों को उनके गंतव्य तक पहुंचाती हैं. रेलवे ट्रैक भारी वजन के अलावा बारिश, धूप और कई प्राकृतिक आपदाओं का भी सामना करते हैं. गौरतलब है कि ये रेलवे ट्रैक लोहे से बने होते हैं. परंतु आपने देखा होगा कि इतना पानी और हवा पड़ने के बाद भी इनमें जंग नहीं लगती है. आखिर इतने प्राकृत आपदाओं के बाद भी लोहे के ट्रैक में जंग क्यों नहीं लगती है?
क्यों लोहे में जंग लगती है?
बता दें कि जब लोहे से बनी वस्तुएं नम हवा में या गीली होने पर ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करती हैं. उस स्थिति में आयरन ऑक्साइड की एक भूरे रंग की परत लोहे पर जमा हो जाती है. वहीं लोहे के साथ ऑक्सीजन के रिएक्शन कारण आयरन ऑक्साइड बनता है. जिसकी वजह से यह भूरे रंग की कोटिंग होती है. इसी क्रिया को लोहे में जंग लगना या धातु का क्षरण कहा जाता है. यह नमी के कारण होता है और यह परत ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर, एसिड आदि के समीकरण से बनती है. बता दें कि हवा या ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में लोहे में जंग नहीं लगता है.
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क्यों खास होता है रेलवे ट्रैक?
बता दें कि एक विशेष प्रकार के स्टील का उपयोग रेलवे ट्रैक बनाने के लिए किया जाता है, जो लोहे से ही बनाया जाता है. दरअसल स्टील और मंगलोय को मिलाकर रेल की पटरियां बनाई जाती हैं. स्टील और मैंगनीज का मिश्रण है मैंगनीज. इसमें 12 प्रतिशत मैंगनीज और 1 प्रतिशत कार्बन होता है. इसके कारण ऑक्सीकरण नहीं होता या बहुत धीमा होता है, इसलिए इसमें कई वर्षों तक जंग नहीं लगती. जंग लगने के कारण रेलवे ट्रैक को बार-बार बदलना पड़ेगा और लागत भी काफी आती है.
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