कैसे मिला Vallabhbhai Patel को सरदार और लौह पुरुष उपनाम, जानिए उन्होंने देश को कैसे एकजुट किया

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Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti: भारत में आज (31 अक्टूबर) को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारत के पहले गृह मंत्री लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की आज 148वीं जयंती है. भारत के पहले उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म गुजरात के नडियाद में 31 अक्टूबर 1875 को एक किसान परिवार में हुआ था. सरदार पटेल बचपन से ही पढाई में तेज थे. परंतु इस दौरान उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था. सरदार पटेल की शादी महज 18 साल की आयु में झावेर बा से हो गई.

बता दें कि कानून की पढाई करने सरदार पटेल जुलाई 1910 में इंग्लैंड चले गए. लंदन में पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 1913 में अहमदाबाद आकर उन्होंने वकालत शुरू की. वहीं सरदार पटेल बहुत जल्द ही देश के जाने-माने वकील बन गए. बता दें कि सरदार पटेल गांधीजी के विचारों से बहुत प्रभावित थे. उनकी मुलाकात गांधीजी से अक्टूबर 1917 में हुई, जिसके बाद वे आजादी की लड़ाई में कूद पड़े.

भारत को एक सूत्र में बांधने में बड़ी भूमिका निभाई

हिंदुस्तान जब 15 अगस्त 1947 को 200 वर्षों के अंग्रेजी हुकूमत से जब आजाद हुआ. उस वक्त देश में छोटी-बड़ी कुल 565 से ज्यादा रियासतें मौजूद थीं. उस समय की सबसे बड़ी चुनौती ये थी की इन सभी को एक करके एक देश के रूप में कैसे आगे लेकर चला जाए. इस चुनौती से पार में सरदार पटेल की सबसे बड़ी भूमिका थी. सरदार पटेल देश में मौजूद सभी रियासतों को जोड़कर भारत के अधीन ले आए. वहीं देश की कई रियासतें भारत में शामिल नहीं होना चाहती थी. परंतु सरदार पटेल के हठ के आगे इन लोगों की कोई भी पैंतरेबाजी काम नहीं आई. अंत में बेहतर और सूंदर भारत सरदार पटेल के लगन से दिखाई दी.

सरदार के किस बात से माने भारतीय रियासतों के राजा

बता दें कि सरदार पटेल ने रियासतों को तीन बातों (रक्षा, विदेश मामले और संचार) के लिए राजी कर लिया. दरअसल रक्षा मामलों में जल, थल और वायुसेना शामिल थी. जिसका अर्थ था कि अगर भविष्य में किसी भी रियासत पर किसी दूसरे देश या किसी आतंकी संगठन का हमला होता तो वहां भारतीय डिफेंस फोर्सेज को तैनात किया जाएगा. विदेश मामलों में किसी दूसरे देश के साथ कोई संधि, किसी अपराधी का प्रत्यर्पण, समर्पण या बाहर रह रहे भारतीयों की नागरिकता से जुड़ी बातें थीं.

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पटेल को कैसे मिली सरदार और लौह पुरुष की उपाधि

बता दें कि भारत को आजादी दिलाने में सरदार पटेल का बड़ा योगदान था. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसा की निति से प्रभावित हो कर सरदार पटेल आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. उन्होंने सबसे पहला और बड़ा 1918 में खेड़ा आंदोलन का योगदान था. 1928 में बारदोली सत्याग्रह आंदोलन सफल होने के बाद उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि दी गई. महात्मा गांधी ने उनके साहस और व्यक्तित्व को देखकर लौह पुरुष की उपाधि दी थी. आजादी के बाद देश के संविधान निर्माण में भी उनकी बड़ी भूमिका थी. वे संविधान सभा के वरिष्ठ सदस्य थे.

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