Fathima Beevi Passed Away: सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज का निधन, 96 साल की उम्र में ली आखिरी सांस

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Fathima Beevi Passed Away: सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज जस्टिस फातिमा बीबी का निधन हो गया है. वह 96 वर्ष की थीं. 30 अप्रैल 1927 को केरल के त्रावणकोर साम्राज्य के पथानामिट्ठा गांव में जन्म हुआ. वह 6 अक्टूबर 1989 से 29 अप्रैल 1992 तक सुप्रीम कोर्ट में जज रहीं. वे देशभर की महिलाओं के लिए एक आदर्श थीं, वहीं न्यायपालिका के इतिहास में भी उनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है. केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने उनके निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि जस्टिस बीवी का इस दुनिया से जाना बेहद दर्दनाक है.

फातिमा बीबी के नाम हैं कई रिकॉर्ड

जस्टिस एम फातिमा बीबी देश की उच्च न्यायपालिका में पहली मुस्लिम महिला थीं और किसी एशियाई देश में सुप्रीम कोर्ट की जज बनने वाली पहली महिला भी थीं. उन्होंने 1950 में बार काउंसिल परीक्षा में स्वर्ण पदक के साथ टॉप किया. बार काउंसिल गोल्ड मेडल पाने वाली पहली महिला फातिमा बीबी थीं. फातिमा बीबी के नाम पर और भी कई कहानियां हैं जो उनके महान व्यक्तित्व को दर्शाती हैं.

विज्ञान पढ़ना था, वकील बन गई  

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, फातिमा बीवी का जन्म 30 अप्रैल 1927 को पथानामथिट्टा, त्रावणकोर में हुआ था. उनके पिता का नाम मीरा साहब और माता का नाम खदेजा बीबी था. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा 1943 में कैथोलिक हाई स्कूल, पथानामथिट्टा से पूरी की. इसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए तिरुवनंतपुरम चली गईं, जहां वह 6 साल तक रहीं. वह विज्ञान की पढ़ाई करना चाहती थीं, लेकिन उनके पिता भारत की पहली महिला जज और हाई कोर्ट जज बनने वाली जस्टिस अन्ना चांडी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी बेटी फातिमा बीवी को विज्ञान की बजाय कानून की पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया. फातिमा बीवी ने अपने पिता की सलाह मानी और कानून की दुनिया में अपना करियर बनाया.

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1950 से प्रारंभ अनेक पदों पर किया कार्य

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1950 में लॉ करने के बाद उन्होंने बार काउंसिल ऑफ इंडिया की परीक्षा दी और प्रथम स्थान पर रहीं. उन्होंने 14 नवंबर 1950 को केरल में एक वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया. इसके बाद वह केरल की न्यायाधीश (1968-72), मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (1972-4), जिला एवं सत्र न्यायाधीश (1974-80) रही हैं. वह 6 अक्टूबर 1989 को हाई कोर्ट से सेवानिवृत्त होने के बाद वह सुप्रीम कोर्ट की महिला न्यायाधीश बनीं. वह यह मुकाम हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला थीं.

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