Socialist और Secular शब्द को लेकर नई संसद में खड़ा हुआ विवाद, विपक्षी नेताओं ने जताई आपत्ति

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Parliament Special Session: नई संसद के पहले ही दिन में धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द को लेकर विवाद खड़ा हो गया. 19 सितंबर को नई संसद का पहला दिन था जिसमें सभी सांसदो को भारत के संविधान की कॉपी गिफ्ट में दी गई. इसके बाद संसद में विवाद की शुरुआत कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने की. संविधान की जो कॉपी सांसदो को दी गई उसकी प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द गायब हैं. इस बात को लेकर पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी से शरद पवार और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से विनय विश्वम समेत कई नेताओं ने इस पर आपत्ति जताई.

संविधान में कब जोड़े गए ये शब्द?

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1976 के कार्यकाल में संविधान के प्रस्तावना में यह संशोधन हुआ था. इस संशोधन में पंथनिरपेक्ष और समाजवाद शब्दों को जोड़ा गया. बता दें कि इसके लिए 42वां संशोधन किया गया था. संविधान में पंथनिरपेक्ष शब्द जोड़ने का उद्देश्य देश में विभिन्न धार्मिक समुदायों में एकता को बढ़ाना था. इसकी वजह थी कि सभी धर्मों के साथ एक समान व्यवहार किया जाए और किसी विशेष धर्म का पक्ष न लिया जाए. गौरतलब है कि समाजवाद के प्रति इंदिरा गांधी की वचनबद्धता के लिए संविधान में इस शब्द को जोड़ा गया.

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जानिए संशोधन का प्रावधान

प्रस्तावना संविधान के दर्शन और उद्देश्य को बताती है. 26 नवंबर 1949 में संविधान सभा के दौरान संविधान को स्वीकार किया गया था. बता दें कि संविधान और इसकी प्रस्तावना में संशोधन का प्रावधान है. इसी के अनुसार 100 से ज्यादा बार संशोधन किया जा चुका है. गौरतलब है कि सरकार की तरफ से महिला आरक्षण के लिए पेश किए गए नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल को लागू करने के लिए संविधान में 128वां संशोधन किया जाएगा. लोकसभा में यह बिल पास हो चुका है और अब राज्यसभा में इसको पेश किया जाएगा. बता दें कि संविधान के प्रस्तावना में सिर्फ 1 बार इमरजेंसी के दौरान संशोधन किया गया था.

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