जब ISRO ने जानबूझकर क्रैश कराया अपना अंतरिक्ष यान, जानिए क्या थी पूरी कहानी?

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Chandrayaan 3:  23 अगस्त का इंतजार पूरे भारतवर्ष को है. इस दिन भारत का तीसरा चंद्र मिशन चंद्रयान-3 चंद्रमा की दहलीज पर अपने सफल प्रक्षेपण के लिए तैयार है. ऐसे में हर किसी को चांद पर इसकी सॉफ्ट लैंडिंग का इंतजार है. बता दें, अगर भारत ऐसा करता है तो भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बन जाएगा. हाल ही में रूस का लूना-25 अंतरिक्ष यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है. ऐसे में पूरी दुनिया की निगाहें इस समय भारत के चंद्रमा मिशन पर टिकी हुई हैं.

इसी कड़ी में आज हम बात करने जा रहे हैं भारत के पहले चंद्र मिशन यानी चंद्रयान-1 के बारे में. आख़िर क्यों भारत के पहले चंद्र मिशन को अंतरिक्ष में क्रैश होना पड़ा? जी हां, इस मिशन को इसरो ने खुद ही जानबूझकर नष्ट कर दिया. आइए हम आपको बताते हैं.

2008 में लांच हुआ था पहला मून मिशन

दरअसल, 2008 में भारत ने चांद पर अंतरिक्ष यान भेजा था. जिसे बाद में इसरो ने जानबूझकर नष्ट कर दिया. बता दें, उस समय केवल चार देश अमेरिका, रूस, यूरोप और जापान ही चंद्रमा पर मिशन भेजने में सक्षम थे. वहीं, हमारा देश भारत ऐसा करने वाला दुनिया का पांचवां देश बन गया. इस ऐतिहासिक मिशन के बाद भारत ने रिकॉर्ड बुक में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराया. इस चंद्र मिशन के जरिए भारत ने चंद्रमा की सतह पर पानी खोजने का बड़ा कारनामा किया.

इसरो ने इस चंद्र मिशन को चंद्रयान-1 नाम दिया जिसमें उन्होंने चंद्रमा की खोज के लिए मून इम्पैक्ट प्रोब नामक एक ऑर्बिटर विकसित किया. इसे 22 अक्टूबर 2008 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था. बता दें कि इस अंतरिक्ष यान से भारत को कई अहम जानकारियां मिलीं.

अंतरिक्ष यान से मिली कई अहम जानकारियां

इस मून मिशन से देश के वैज्ञानिकों को अगले दो मून मिशन यानी चंद्रयान-2, चंद्रयान-3 लॉन्च करने में मदद मिली. इसी ने साल 2019 में चंद्रयान-2 और 2023 में चंद्रयान-3 मिशन की नींव रखी. दरअसल, इंपैक्ट प्रोब से मिली जानकारी ने चंद्रमा की दुनिया के रहस्य को ऐसे उजागर किया, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था. आखिरकार, 25 मिनट की लंबी डुबकी लगाने के बाद चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज करने वाला ये पहला डिवाइस बना. इस मिशन की लौन्चिंग के बाद इसे 17 नवंबर 2008 की रात लगभग 8 बजकर 6 मिनट पर इसरो के मिशन नियंत्रण में बैठे इंजीनियरों ने नष्ट करने की कमांड दी. जिसके बाद चांद की खामोश दुनिया ने एक भयंकर धमाके को महसूस किया.

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क्यों किया मून मिशन को क्रेश?

बता दें मून इम्पैक्ट प्रोब ने चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई से अपनी अंतिम यात्रा शुरू की. जैसे ही प्रोब चंद्रयान ऑर्बिटर से दूर जाने लगा, चंद्रयान से निकलने के लगभग 25 मिनट बाद मून इम्पैक्ट प्रोब को मुसीबत का सामना करना पड़ा. चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान की एक कठिन लैंडिंग हुई. इसरो ने एक ऐसे अंतरिक्ष यान को दूसरी दुनिया में दुर्घटनाग्रस्त करके इतिहास रचा, जो प्राचीन काल से मानव प्रजाति के लिए एक पहेली बनी हुई थी. बता दें कि इस मून इंपैक्ट प्रोब का उद्देश्य दुनिया को भारत की क्षमताओं का एहसास कराना था. ऐसे में इस मून इंपैक्ट प्रोब का काम इंजन को तेज करने के लिए नहीं, बल्कि इसे धीमा करने के लिए और पिच-परफेक्ट क्रैश किया गया.

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