शहीद-ए-आजम Bhagat Singh की 116वीं जयंती, जानिए उनसे जुड़ी 7 अनोखी बातें

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Bhagat Singh Jayanti: अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग लड़ते-लड़ते हसीं से अपना प्राण कुर्बान करने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह का आज जयंती है. बता दें कि भगत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ घुटने नहीं टेकने के संकल्प के साथ खूब संघर्ष किया. उन्होंने (Bhagat Singh) भारत में अपने विचारधारा की लड़ाई जब जीवित रहे तब तक लड़े. इतना ही नहीं उन्होंने (Bhagat Singh) आने वाले पीढ़ी के लिए कई किताबें भी लिखी है. जिसमें ‘मैं नास्तिक हूं’ सबसे लोकप्रिय हैं. आज भगत सिंह के जयंती के मौके पर देश भर में कई कार्यकर्मों का आयोजन किया जा रहा है.

आइए जानते हैं भगत सिंह के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें:-

  • शहीद-ए-आजम भगत सिह का जन्म 28 सितंबर, 1907 पंजाब प्रांत में लायपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था. उनके माता-पिता का नाम किशन सिंह और माता विद्यावती है. उनकी जन्मस्थान अब पाकिस्तान में स्थित है. वहीं भगत सिंह की दादी ने उनका नाम भागां वाला रखा था, बाद में उन्हें भगत सिंह कहा जाने लगा.
  • शहीद-ए-आजम (Bhagat Singh) के पिता किशन सिंह, चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे. भगत सिंह की पढ़ाई लाहौर के डीएवी हाई स्कूल में हुई. साल 1919 में जब गांधी जी की अगुवाई में असहयोग आंदोलन शुरू हुआ तब भगत सिंह 7वीं कक्षा में थे. सिर्फ 15 साल की उम्र में ही वे गुप्त क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे थे.
  • 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी वाले दिन रौलट एक्ट के विरोध में देशवासियों की जलियांवाला बाग में सभा हुई. ब्रिटिश जनरल डायर के क्रूर और दमनकारी आदेशों के चलते निहत्थे लोगों पर अंग्रेजी सैनिकों ने ताबड़बतोड़ गोलियों की बारिश कर दी थी. इस अत्याचार के खिलाफ भगत सिंह ने लाहौर नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना कर डाली थी.

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  • भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अफसर जेपी सांडर्स को मारा था. इस काम में चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी. सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर भगत सिंह ने काकोरी कांड को अंजाम दिया था.
  • भगत सिंह ने क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिए दिल्ली में स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को बम और पर्चे फेंके थे.
  • शहीद-ए-आजम (Bhagat Singh) का ‘इंकलाब जिंदाबाद’ नारा काफी मशहूर है. भगत सिंह अपने हर भाषण और लेख में इसका जिक्र करते थे. वहीं भगत सिंह को 7 अक्टूबर 1930 को मौत की सजा सुनाई गई थी, जिसे उन्होंने हंसते-हंसते स्वीकार कर लिया.
  • शहीद-ए-आजम भगत सिंह को 24 मार्च 1931 को फांसी देना तय किया गया था, परंतु अंग्रेजी हुकूमत इतना डरी हुई थी. उनलोगों ने भगत सिंह को 11 घंटे पहले ही 23 मार्च 1931 को उन्हें 7:30 बजे फांसी पर चढ़ा दिया गया था.

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